भारतीय संविधान का विकास: एक रोचक यात्रा
भारत के संविधान का इतिहास एक रोमांचक कहानी है जो कई दशकों तक चली। यह कहानी भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई है और इसमें कई मोड़ आए। आइए इस यात्रा को शुरू से अंत तक देखें:
प्रारंभिक कदम (1773-1857)
हमारी कहानी की शुरुआत 18वीं सदी के अंत से होती है। 1773 में ब्रिटिश संसद ने रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया। यह पहला कदम था जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के मामलों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इस एक्ट ने बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल बना दिया और वारेन हेस्टिंग्स पहले गवर्नर-जनरल बने।
इसके बाद 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट आया। इसने कंपनी के व्यापारिक और राजनीतिक कार्यों को अलग कर दिया। अब भारत में कंपनी के क्षेत्रों को "ब्रिटिश पजेशन्स इन इंडिया" कहा जाने लगा।
19वीं सदी की शुरुआत में 1813 और 1833 के चार्टर एक्ट आए। 1833 के एक्ट ने गवर्नर-जनरल को पूरे भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया। यह केंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
1853 का चार्टर एक्ट भी महत्वपूर्ण था। इसने पहली बार भारतीय विधान परिषद में गैर-सरकारी सदस्यों को शामिल किया। यह भारतीयों की भागीदारी की दिशा में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम था।
ब्रिटिश क्राउन का शासन (1858-1919)
1857 के विद्रोह ने भारत में शासन व्यवस्था को बदल दिया। 1858 में भारत सरकार अधिनियम पारित हुआ जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारत सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गया। अब भारत के लिए एक सचिव नियुक्त किया गया जो ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था।
1861 का भारतीय परिषद अधिनियम एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने पहली बार भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद में शामिल किया। यह भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
1892 का भारतीय परिषद अधिनियम भी महत्वपूर्ण था। इसने अप्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था शुरू की और विधान परिषदों के अधिकार बढ़ाए।
20वीं सदी की शुरुआत में 1909 का भारतीय परिषद अधिनियम आया जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधार भी कहा जाता है। इसने पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था शुरू की। साथ ही पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था भी शुरू हुई जो बाद में विभाजन का एक कारण बनी।
स्वराज की ओर बढ़ते कदम (1919-1935)
1919 का भारत सरकार अधिनियम एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसे मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है। इसने केंद्र और प्रांतों के विषयों को अलग किया और प्रांतों में द्वैध शासन की व्यवस्था शुरू की। अब प्रांतीय विषयों को दो भागों में बांटा गया - आरक्षित और हस्तांतरित। हस्तांतरित विषयों पर भारतीय मंत्रियों का नियंत्रण था जो विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी थे।
इस अधिनियम ने केंद्र में पहली बार द्विसदनीय व्यवस्था शुरू की। अब एक विधान परिषद और एक विधान सभा थी जो बाद में राज्यसभा और लोकसभा बनीं। इसने वायसराय की कार्यकारी परिषद में तीन भारतीय सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान भी किया।
1935 का भारत सरकार अधिनियम एक और महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रस्ताव रखा जिसमें ब्रिटिश भारत और देसी रियासतें शामिल थीं। हालांकि यह कभी लागू नहीं हो पाया। इसने प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर दिया और उन्हें स्वायत्तता दी। केंद्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गई लेकिन यह भी कभी लागू नहीं हुई।
इस अधिनियम ने संघीय न्यायालय की स्थापना की जो बाद में सर्वोच्च न्यायालय बना। इसने प्रांतीय स्वायत्तता, संघीय ढांचा, द्विसदनीय विधानमंडल जैसी कई व्यवस्थाएं शुरू कीं जो बाद में भारतीय संविधान में शामिल की गईं।
स्वतंत्रता की ओर (1935-1947)
1935 के बाद भारत तेजी से स्वतंत्रता की ओर बढ़ा। 1942 में क्रिप्स मिशन आया जिसने स्वतंत्रता के बाद एक संविधान सभा बनाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया।
1946 में कैबिनेट मिशन आया जिसने एक संविधान सभा बनाने का प्रस्ताव रखा। इस बार यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और संविधान सभा का गठन हुआ। 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक हुई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष चुने गए।
जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया जो बाद में संविधान की प्रस्तावना बना। 22 जनवरी 1947 को यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। अब संविधान सभा एक संप्रभु निकाय बन गई। 29 अगस्त 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति बनाई गई।
संविधान का निर्माण (1947-1950)
अब संविधान निर्माण का काम तेजी से शुरू हुआ। मसौदा समिति ने कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया और भारत के लिए उपयुक्त प्रावधानों को चुना।
ब्रिटिश संविधान से संसदीय शासन प्रणाली, मंत्रिमंडल प्रणाली और कानून का शासन लिया गया। अमेरिकी संविधान से मौलिक अधिकार, न्यायिक समीक्षा और उपराष्ट्रपति का पद लिया गया। आयरलैंड के संविधान से राज्य के नीति निर्देशक तत्व और राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति ली गई।
कनाडा के संविधान से संघीय ढांचा और अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना लिया गया। ऑस्ट्रेलियाई संविधान से समवर्ती सूची और व्यापार की स्वतंत्रता का विचार लिया गया। जर्मन संविधान से आपातकाल में मौलिक अधिकारों के निलंबन का प्रावधान लिया गया।
सोवियत संघ के संविधान से मौलिक कर्तव्यों और प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का विचार लिया गया। फ्रांसीसी संविधान से स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का आदर्श लिया गया।
इस तरह विभिन्न देशों के संविधानों से प्रेरणा लेकर भारत के लिए एक विशिष्ट संविधान तैयार किया गया जो भारत की विविधता और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता था।
फरवरी 1948 में संविधान का पहला मसौदा तैयार हुआ। इस पर विस्तृत चर्चा हुई और कई संशोधन किए गए। नवंबर 1949 तक संविधान का अंतिम मसौदा तैयार हो गया।
26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अंगीकार किया। 24 जनवरी 1950 को सभा के सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ और भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।
संविधान की विशेषताएं
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें मूल रूप से 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थीं। यह एक लचीला संविधान है जिसमें संशोधन की व्यवस्था है।
संविधान ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। इसने सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व का आश्वासन दिया।
संविधान ने मौलिक अधिकारों की गारंटी दी जो न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय हैं। साथ ही राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का प्रावधान किया गया जो सरकार के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।
संविधान ने एक मजबूत केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था स्थापित की। इसने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया। साथ ही आपातकाल की व्यवस्था भी की गई जो केंद्र को विशेष शक्तियां देती है।
संविधान ने स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की। सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्यायपालिका का शीर्षस्थ निकाय है। इसके नीचे उच्च न्यायालय और फिर जिला और अधीनस्थ न्यायालय आते हैं। भारतीय संविधान ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता
न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका के हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए। न्यायपालिका को निष्पक्ष और तटस्थ रहना चाहिए और न्यायाधीशों को बिना किसी दबाव, भय या पक्षपात के अपने न्यायिक कर्तव्यों का पालन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए[1][2]।
न्यायपालिका की संरचना
भारत में एक एकीकृत न्यायिक प्रणाली है। सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक प्रणाली का शीर्षस्थ निकाय है। इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय हैं और उनके नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय हैं। यह संरचना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करती है[2][4]।
न्यायिक समीक्षा
भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को न्यायिक समीक्षा का अधिकार दिया है। इसका अर्थ है कि न्यायपालिका किसी भी कानून या सरकारी कार्रवाई की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है। यदि कोई कानून या कार्रवाई संविधान के विपरीत पाई जाती है, तो न्यायपालिका उसे निरस्त कर सकती है। यह प्रावधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की सर्वोच्चता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है[3][4]।
न्यायाधीशों की नियुक्ति और हटाना
उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है। एक बार नियुक्त होने के बाद, न्यायाधीशों को हटाना बहुत कठिन होता है। उन्हें केवल संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव के माध्यम से ही हटाया जा सकता है। यह प्रावधान न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है[2][4]।
न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका का मुख्य कार्य कानून की व्याख्या करना, विवादों का निपटारा करना और सभी नागरिकों को न्याय प्रदान करना है। यह लोकतंत्र का प्रहरी और संविधान का संरक्षक है। न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि कानून का शासन बना रहे और किसी भी व्यक्ति या संस्था को कानून से ऊपर न माना जाए[2][4]।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं। यह स्वतंत्र न्यायपालिका भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है और यह सुनिश्चित करती है कि सभी नागरिकों को न्याय मिले और संविधान की सर्वोच्चता बनी रहे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Citations:
[1] https://byjus.com/free-ias-prep/constitutional-development-of-india/
[2] http://constitutionnet.org/country/india
[3] https://www.clearias.com/historical-background-of-indian-constitution/
[4] https://www.legalserviceindia.com/legal/article-8097-history-and-development-of-the-constitution-of-india.html
[5] https://www.igntu.ac.in/eContent/BA-PoliticalScience-02Sem-DrudaySingh-Indian%20Government%20and%20Politics.pdf
[6] https://testbook.com/ias-preparation/constitutional-development-of-india
[7] https://blog.ipleaders.in/history-and-development-of-the-constitution-of-india/
[8] https://byjusexamprep.com/upsc-exam/constitutional-development-of-india
[9] https://byjus.com/free-ias-prep/historical-background-of-constitution-of-india/
[10] https://testbook.com/ias-preparation/making-of-the-indian-constitution
[11] https://magazines.odisha.gov.in/Orissareview/2020/Jan/engpdf/1-5.pdf
[12] https://www.constitutionofindia.net/stages-of-constitution-making/
[13] https://artsandculture.google.com/story/the-making-of-the-indian-constitution-nehru-memorial-museum-library/yQWhQ126iAYA8A?hl=en
[14] https://vajiramandravi.com/quest-upsc-notes/constituent-assembly-making-of-the-indian-constitution/
[15] https://www.studyiq.com/articles/constitution-of-india/
[16] https://en.wikipedia.org/wiki/Constitution_of_India