भीमराव अंबेडकर: आत्मकथा
प्रारंभिक जीवन
14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में जन्मा एक बालक, जिसका नाम भीमराव रामजी अंबेडकर था, ने भारतीय समाज में एक नई क्रांति की शुरुआत की। उनके पिता, रामजी मालोजी सकपाल, ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे और उनकी माता, भीमाबाई, एक धार्मिक महिला थीं। भीमराव का जन्म एक दलित महार परिवार में हुआ था, जो उस समय समाज में सबसे निचले पायदान पर था और उन्हें 'अछूत' माना जाता था।
शिक्षा और संघर्ष
भीमराव का बचपन कठिनाइयों से भरा था। स्कूल में उन्हें और अन्य दलित बच्चों को अलग बैठाया जाता था और उन्हें पानी पीने के लिए भी ऊंची जाति के किसी व्यक्ति की मदद लेनी पड़ती थी। इस अपमानजनक व्यवहार ने उनके मन में गहरी छाप छोड़ी। 1894 में उनके पिता सेवानिवृत्त हो गए और परिवार सतारा चला गया। दो साल बाद, उनकी माता का निधन हो गया और परिवार की देखभाल उनकी चाची ने की।
उच्च शिक्षा की ओर कदम
भीमराव ने 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और 1908 में एल्फिंस्टन कॉलेज, बॉम्बे में दाखिला लिया। वे अपने महार जाति से पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। 1912 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय द्वारा दी गई छात्रवृत्ति के तहत कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में उच्च शिक्षा के लिए भेजा गया।
कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
1913 में भीमराव कोलंबिया विश्वविद्यालय पहुंचे और 1915 में एम.ए. और 1916 में पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। उनकी थीसिस का शीर्षक था "द एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ द ईस्ट इंडिया कंपनी"। इसके बाद, वे लंदन गए और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया। वहां उन्होंने एम.एस.सी. और डी.एस.सी. की डिग्री प्राप्त की।
भारत वापसी और सामाजिक संघर्ष
भारत लौटने के बाद, भीमराव ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दलितों के शिक्षा और सामाजिक उन्नति के लिए काम करना था। 1927 में उन्होंने महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसमें दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों का उपयोग करने का अधिकार दिलाने की मांग की गई।
राजनीतिक करियर
1936 में, भीमराव ने स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की और 1937 के केंद्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतीं। उन्होंने "जाति का उन्मूलन" नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने हिंदू जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना की। 1942 से 1946 तक, वे वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम मंत्री रहे और कई महत्वपूर्ण श्रम सुधारों को लागू किया।
भारतीय संविधान का निर्माण
1947 में, भीमराव अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में, संविधान में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण और समानता के प्रावधान शामिल किए गए।
बौद्ध धर्म में दीक्षा
1956 में, भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था से निराश होकर बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने नागपुर में एक समारोह में लगभग 200,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
निधन और विरासत
6 दिसंबर, 1956 को दिल्ली में भीमराव अंबेडकर का निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी जीवित हैं। उन्होंने अपने जीवन को दलितों और वंचितों के अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया और भारतीय समाज में एक नई क्रांति की शुरुआत की।
निष्कर्ष
भीमराव अंबेडकर का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है, जो हमें सिखाती है कि कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद, दृढ़ संकल्प और शिक्षा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है। उनका जीवन हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने समाज और देश के लिए कुछ करें और समानता और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित एक बेहतर समाज का निर्माण करें।
Citations:
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[11] https://www.nextias.com/blog/dr-br-ambedkar/