मेरा जीवन: एक अद्भुत यात्रा
मैं, जवाहरलाल नेहरू, 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में जन्मा था। मेरा बचपन सुख-सुविधाओं से भरा था, लेकिन मुझे तब नहीं पता था कि भविष्य में मेरा जीवन किस तरह का रोमांचक सफर बनने वाला है।
मेरे पिता मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे। उन्होंने मुझे अंग्रेजी शिक्षा दिलवाई। 15 साल की उम्र में मुझे इंग्लैंड भेजा गया। वहां हैरो स्कूल और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। लेकिन मन में हमेशा भारत की याद आती रहती थी।
1912 में भारत लौटा तो देश की स्थिति देखकर मन विचलित हो गया। अंग्रेजों के अत्याचार, गरीबी और अशिक्षा - सब कुछ बदलना था। तभी मेरी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उनके विचारों ने मुझे प्रभावित किया और मैं स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ा।
1920 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया तो पहली बार जेल गया। जेल में कठिन दिन थे, लेकिन आजादी की लौ और तेज हो गई। 1929 में कांग्रेस का अध्यक्ष बना और पूर्ण स्वराज का लक्ष्य रखा।
1930 के दशक में कई बार जेल गया। लेकिन हर बार और मजबूत होकर निकला। जेल में ही मैंने अपनी किताबें लिखीं - 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' और 'ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री'। इन किताबों ने मेरे विचारों को और निखारा।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फिर जेल गया। 1942 में 'भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन इतना जोरदार था कि अंग्रेजों की नींद उड़ गई।
आखिरकार 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराते हुए मेरी आंखें नम हो गईं। सपना सच हो गया था।
प्रधानमंत्री बनने के बाद देश के विकास के लिए कई योजनाएं बनाईं। पंचवर्षीय योजनाएं, बड़े बांध, आईआईटी जैसे संस्थान - सब कुछ एक नए भारत के निर्माण के लिए था।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं। 1962 में चीन से युद्ध हुआ तो बहुत दुख हुआ। फिर भी हिम्मत नहीं हारी और देश को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखा।
27 मई 1964 को जब मैंने अंतिम सांस ली, तो मन में संतोष था कि एक स्वतंत्र और आधुनिक भारत की नींव रख पाया। मेरा सपना था कि भारत विश्व गुरु बने। आज भी वह सपना जीवित है।
मेरा जीवन एक लंबी और रोमांचक यात्रा रही। कभी ऊंचाइयां तो कभी गहरी खाइयां। लेकिन हर कदम पर देश और देशवासियों के लिए कुछ कर गुजरने की ललक थी। आज भी मेरी आत्मा भारत के विकास के लिए प्रार्थनारत है।
बचपन और शुरुआती शिक्षा
मेरा जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। मेरे पिता मोतीलाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे और माता स्वरूप रानी एक धार्मिक महिला थीं। हमारा परिवार कश्मीरी पंडित समुदाय से था। बचपन में मुझे घर पर ही अंग्रेजी गवर्नेस से शिक्षा मिली। मेरे पिता चाहते थे कि मैं पूरी तरह से अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करूं।
15 साल की उम्र में मुझे इंग्लैंड भेज दिया गया। वहां मैंने हैरो स्कूल में पढ़ाई की। शुरुआत में मुझे बहुत अजीब लगा। घर की याद आती थी। लेकिन धीरे-धीरे मैं वहां के माहौल में ढल गया। हैरो में मेरे कुछ अच्छे दोस्त बन गए। खेलकूद और पढ़ाई में मैंने अच्छा प्रदर्शन किया।
1907 में मैं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिल हुआ। वहां मैंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई की। कैम्ब्रिज में मेरी रुचि राजनीति, अर्थशास्त्र और साहित्य में भी बढ़ी। मैंने बर्नार्ड शॉ, एच.जी. वेल्स, जॉन मेनार्ड कीन्स जैसे लेखकों की किताबें पढ़ीं। इन किताबों ने मेरे विचारों को बहुत प्रभावित किया।
1910 में स्नातक की डिग्री लेने के बाद मैं लंदन चला गया। वहां मैंने इनर टेम्पल में कानून की पढ़ाई की। लंदन में रहते हुए मैंने फेबियन सोसाइटी के विचारकों से मुलाकात की। उनके समाजवादी विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया।
1912 में मैं भारत लौट आया। मन में कई सपने और विचार थे। लेकिन मुझे नहीं पता था कि आने वाले समय में मेरा जीवन किस तरह बदलने वाला है।
स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश
भारत लौटने के बाद मैंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। लेकिन मेरा मन वकालत में नहीं लगता था। देश की स्थिति देखकर मन विचलित हो जाता था। अंग्रेजों के अत्याचार, गरीबी और अशिक्षा - सब कुछ बदलना था।
1916 में मेरी शादी कमला कौल से हुई। अगले साल हमारी बेटी इंदिरा का जन्म हुआ। इसी दौरान मैं होम रूल लीग से जुड़ गया। धीरे-धीरे मेरी रुचि राजनीति में बढ़ने लगी।
1919 में मेरी पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उनके विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। गांधीजी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन में मैंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 1921 में पहली बार मुझे जेल जाना पड़ा। जेल में कठिन दिन थे, लेकिन आजादी की लौ और तेज हो गई।
1923 में मैं कांग्रेस का महासचिव बना। 1926-27 में मैंने यूरोप का दौरा किया। वहां मैंने कई देशों के स्वतंत्रता संग्राम का अध्ययन किया। इस दौरे ने मेरे विचारों को और निखारा।
1928 में मैंने स्वतंत्र मजदूर पार्टी की स्थापना की। मेरा मानना था कि आजादी के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक न्याय भी जरूरी है। 1929 में मैं कांग्रेस का अध्यक्ष बना। लाहौर अधिवेशन में मैंने पूर्ण स्वराज का लक्ष्य रखा।
1930 के दशक में मैं कई बार जेल गया। लेकिन हर बार और मजबूत होकर निकला। जेल में ही मैंने अपनी किताबें लिखीं - 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' और 'ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री'। इन किताबों ने मेरे विचारों को और स्पष्ट किया।
1942 में 'भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू हुआ। यह आंदोलन इतना जोरदार था कि अंग्रेजों की नींद उड़ गई। मुझे फिर से जेल भेज दिया गया। लेकिन अब आजादी की लहर को रोकना मुश्किल था।
स्वतंत्र भारत का निर्माण
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराते हुए मेरी आंखें नम हो गईं। सपना सच हो गया था। लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई थीं।
देश का बंटवारा हो चुका था। लाखों लोग विस्थापित हुए थे। सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। ऐसे में देश को एकजुट रखना बड़ी चुनौती थी। मैंने पूरी ताकत से इस चुनौती का सामना किया।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने देश के विकास के लिए कई योजनाएं बनाईं। पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की। बड़े बांधों का निर्माण कराया। आईआईटी, एम्स जैसे संस्थान खोले। मेरा मानना था कि विज्ञान और तकनीक के बिना देश का विकास संभव नहीं है।
विदेश नीति के क्षेत्र में मैंने गुटनिरपेक्षता का रास्ता अपनाया। मेरा मानना था कि शीत युद्ध के दौर में भारत को किसी एक गुट में शामिल नहीं होना चाहिए। इसके लिए मैंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत की।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं। कश्मीर समस्या सिर दर्द बनी हुई थी। 1962 में चीन से युद्ध हुआ तो बहुत दुख हुआ। इस युद्ध ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। फिर भी हिम्मत नहीं हारी और देश को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखा।
मेरा सपना था कि भारत एक आधुनिक, वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने। इसके लिए मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मेरा सपना था कि भारत एक आधुनिक, वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बने। इसके लिए मैंने अथक प्रयास किए।
मेरे कार्यकाल में भारत ने कई क्षेत्रों में प्रगति की। हमने पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की, बड़े बांधों का निर्माण कराया, आईआईटी जैसे शिक्षण संस्थान स्थापित किए। मेरा मानना था कि विज्ञान और तकनीक के बिना देश का विकास संभव नहीं है।
विदेश नीति के क्षेत्र में मैंने गुटनिरपेक्षता का रास्ता अपनाया। शीत युद्ध के दौर में भारत को किसी एक गुट में शामिल नहीं होना चाहिए, यह मेरा दृढ़ विश्वास था। इसके लिए मैंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत की।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं थीं। कश्मीर समस्या सिरदर्द बनी हुई थी। 1962 में चीन से युद्ध हुआ तो बहुत दुख हुआ। इस युद्ध ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। फिर भी हिम्मत नहीं हारी और देश को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखा।
27 मई 1964 को जब मैंने अंतिम सांस ली, तो मन में संतोष था कि एक स्वतंत्र और आधुनिक भारत की नींव रख पाया। मेरा सपना था कि भारत विश्व गुरु बने। आज भी वह सपना जीवित है।
मेरा जीवन एक लंबी और रोमांचक यात्रा रही। कभी ऊंचाइयां तो कभी गहरी खाइयां। लेकिन हर कदम पर देश और देशवासियों के लिए कुछ कर गुजरने की ललक थी। आज भी मेरी आत्मा भारत के विकास के लिए प्रार्थनारत है।
Citations:
[1] https://www.britannica.com/biography/Jawaharlal-Nehru
[2] https://en.wikipedia.org/wiki/Jawaharlal_Nehru
[3] https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/jawaharlal-nehru-biography-1573652876-1
[4] https://www.vedantu.com/biography/jawaharlal-nehru-biography
[5] https://www.pw.live/exams/bank-jobs/jawaharlal-nehru/
[6] https://www.imdb.com/name/nm0624587/bio/
[7] https://pwonlyias.com/jawaharlal-nehru-biography/
[8] https://www.bbc.co.uk/history/historic_figures/nehru_jawaharlal.shtml
[9] https://www.pmindia.gov.in/en/former_pm/shri-jawaharlal-nehru/
[10] https://www.mapsofindia.com/personalities/nehru/childhood-and-family.html
[11] https://kids.britannica.com/kids/article/Jawaharlal-Nehru/353524
[12] https://www.slideshare.net/slideshow/biography-of-jawaharlal-nehru/42125251
[13] https://www.mapsofindia.com/personalities/nehru/education.html
[14] https://www5.open.ac.uk/research-projects/making-britain/content/jawaharlal-nehru
[15] https://simple.wikipedia.org/wiki/Jawaharlal_Nehru
[16] https://www.jnmf.in/chrono.html
[17] https://www.constitutionofindia.net/members/jawaharlal-nehru/
[18] https://www.braingainmag.com/a-world-full-of-beauty-charm-and-adventure-nehru-in-england.htm
[19] https://www.jstor.org/stable/43950462
[20] https://academic.oup.com/book/1958/chapter-abstract/141773811?redirectedFrom=fulltext

