मुरब्बा भारतीय उपमहाद्वीप के खान-पान का एक अभिन्न अंग है। यह फलों या सब्जियों को चीनी या गुड़ की चाशनी में पकाकर बनाया जाने वाला एक मीठा व्यंजन है। इसका इतिहास काफी पुराना और रोचक है। आइए इसके विकास की यात्रा पर एक नज़र डालें:
प्राचीन काल में खाद्य संरक्षण:
मुरब्बे का इतिहास खाद्य संरक्षण की प्राचीन विधियों से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल में, जब रेफ्रिजरेशन की सुविधा नहीं थी, लोग फलों और सब्जियों को लंबे समय तक संरक्षित रखने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते थे। इनमें से एक तरीका था फलों को चीनी या शहद में संरक्षित करना।
मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं में इस तरह के संरक्षण के प्रमाण मिले हैं। लगभग 4000 ईसा पूर्व, मिस्रवासी खजूर और अन्य फलों को शहद में संरक्षित करते थे। यह मुरब्बे का एक प्रारंभिक रूप था।
मध्य एशिया और फारस का योगदान:
मुरब्बे के विकास में मध्य एशिया और फारस का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। "मुरब्बा" शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द "मुरब्बन" से हुई है, जिसका अर्थ है "संरक्षित"। फारसी में इसे "मुरब्बा" कहा जाता था।
9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच, जब इस्लामिक सभ्यता अपने चरम पर थी, मुरब्बा बनाने की कला का विकास हुआ। फारसी शाही रसोईघरों में विभिन्न प्रकार के मुरब्बे बनाए जाते थे। इस दौरान, गुलाब, सेब, नाशपाती, और खुबानी के मुरब्बे लोकप्रिय थे।
भारत में मुरब्बे का आगमन:
भारत में मुरब्बे का आगमन मध्यकाल में हुआ। मुगल शासकों के साथ यह व्यंजन भारत आया और यहाँ की स्थानीय संस्कृति के साथ मिलकर एक नया रूप लिया।
अकबर के शासनकाल (1556-1605) में मुरब्बे का उल्लेख मिलता है। अबुल फजल की प्रसिद्ध पुस्तक "आइन-ए-अकबरी" में विभिन्न प्रकार के मुरब्बों का वर्णन है। इसमें आम, आंवला, और अमरूद के मुरब्बों का विशेष उल्लेख है।
मुगल काल में मुरब्बा न केवल एक व्यंजन था, बल्कि इसे औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता था। आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए मुरब्बों का उपयोग किया।
क्षेत्रीय विविधता का विकास:
जैसे-जैसे मुरब्बा भारत के विभिन्न हिस्सों में फैला, हर क्षेत्र ने इसे अपने स्वाद और उपलब्ध सामग्री के अनुसार अपनाया। इस प्रकार, विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय मुरब्बे विकसित हुए:
1. उत्तर भारत में आम और आंवले का मुरब्बा लोकप्रिय हुआ।
2. बंगाल में आम और आंवले के अलावा, बेल का मुरब्बा भी प्रसिद्ध हुआ।
3. गुजरात में गाजर का मुरब्बा विकसित हुआ।
4. राजस्थान में केर संगरी का मुरब्बा लोकप्रिय हुआ।
औपनिवेशिक प्रभाव:
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान मुरब्बे में नए प्रयोग हुए। अंग्रेजों ने अपने साथ जाम और मार्मलेड की परंपरा लाई, जो मुरब्बे से मिलती-जुलती थी। इसके प्रभाव से भारतीय मुरब्बों में भी कुछ बदलाव आए।
1857 में, कोलकाता में पहली बार औद्योगिक पैमाने पर मुरब्बा उत्पादन शुरू हुआ। यह भारत में मुरब्बा उद्योग के विकास का आरंभ था।
स्वतंत्रता के बाद का विकास:
स्वतंत्रता के बाद, मुरब्बा उद्योग में तेजी से विकास हुआ। छोटे-छोटे उद्यमियों ने घरेलू स्तर पर मुरब्बा बनाना और बेचना शुरू किया।
1950 के दशक में, सरकार ने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू कीं। इसके तहत मुरब्बा बनाने वाले छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहन मिला।
1960 और 70 के दशक में, बड़ी कंपनियां भी मुरब्बा बाजार में उतरीं। किसान, मदर डेयरी जैसी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर मुरब्बा उत्पादन शुरू किया।
आधुनिक युग में मुरब्बा:
वर्तमान समय में, मुरब्बा न केवल एक पारंपरिक व्यंजन है, बल्कि एक आधुनिक खाद्य उत्पाद भी है। आज बाजार में विभिन्न प्रकार के पैक्ड मुरब्बे उपलब्ध हैं।
नए प्रयोग और नवाचार:
1. कम कैलोरी वाले मुरब्बे: डायबिटीज और वजन पर नियंत्रण रखने वाले लोगों के लिए कम चीनी या कृत्रिम मीठे पदार्थों से बने मुरब्बे।
2. ऑर्गेनिक मुरब्बे: जैविक तरीके से उगाए गए फलों से बने मुरब्बे।
3. फ्यूजन मुरब्बे: पारंपरिक और आधुनिक स्वादों का मिश्रण, जैसे चॉकलेट-आम मुरब्बा।
मुरब्बे का सांस्कृतिक महत्व:
मुरब्बा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गया है। यह सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि परंपरा और आतिथ्य का प्रतीक भी है।
1. त्योहार और उत्सव: कई त्योहारों और शादी-विवाह में मुरब्बा एक महत्वपूर्ण व्यंजन के रूप में परोसा जाता है।
2. आयुर्वेदिक महत्व: आयुर्वेद में विभिन्न मुरब्बों को औषधीय गुणों के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, आंवले का मुरब्बा पाचन और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए।
3. परंपरा का संरक्षण: मुरब्बा बनाने की कला को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित किया जाता है, जो सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद करता है।
मुरब्बे का वैश्विक प्रसार:
भारतीय डायस्पोरा के साथ मुरब्बा दुनिया के कई हिस्सों में पहुंचा। आज, लंदन से लेकर न्यूयॉर्क तक, दुनिया के कई शहरों में भारतीय मुरब्बे मिलते हैं।
कैरेबियन देशों में मुरब्बा एक लोकप्रिय व्यंजन बन गया है। वहां इसे अलग-अलग भरावन के साथ खाया जाता है। इसी तरह, दक्षिण अफ्रीका में भी मुरब्बा काफी लोकप्रिय है।
मुरब्बे का भविष्य:
आज के समय में, जहां एक ओर पारंपरिक मुरब्बे का महत्व बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर इसमें नवाचार भी हो रहे हैं।
1. स्वास्थ्य-केंद्रित मुरब्बे: कम चीनी, उच्च फाइबर, और अतिरिक्त पोषक तत्वों के साथ बने मुरब्बे।
2. एक्जोटिक फ्लेवर्स: ड्रैगन फ्रूट, किवी जैसे अनोखे फलों के मुरब्बे।
3. फंक्शनल मुरब्बे: विशेष स्वास्थ्य लाभों के लिए डिज़ाइन किए गए मुरब्बे, जैसे प्रोबायोटिक मुरब्बे।
निष्कर्ष:
मुरब्बे का इतिहास मानव सभ्यता के विकास का एक रोचक अध्याय है। यह सिर्फ एक खाद्य पदार्थ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक, मुरब्बे ने अपने मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए समय के साथ विकसित होना जारी रखा है।
मुरब्बा हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह न केवल हमारा पेट भरता है, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करता है। आने वाले समय में भी मुरब्बा अपना महत्व बनाए रखेगा और नए रूपों में विकसित होता रहेगा, जो हमारी बदलती जीवनशैली और स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुरूप होगा।
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