प्राचीन भारत में, एक ऐसी प्रथा का जन्म हुआ जो सदियों तक समाज को प्रभावित करती रही - सती प्रथा। यह कहानी उस प्रथा के उदय, विकास और अंत की है, जो कभी धर्म का रूप ले चुकी थी और फिर अमानवीय कुरीति बन गई।
सूर्योदय के साथ ही गंगा के तट पर स्थित एक छोटे से गाँव में हलचल मच गई। गाँव के मुखिया की मृत्यु हो गई थी। लोग शोक में डूबे थे, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता मुखिया की पत्नी सुमित्रा को लेकर थी। क्या वह सती होगी? यह सवाल हर किसी के मन में था।
सुमित्रा अपने कमरे में बैठी थी। उसके मन में विचारों का तूफान चल रहा था। क्या उसे अपने पति के साथ चिता पर जलकर मर जाना चाहिए? या फिर जीवित रहकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए? यह निर्णय उसके लिए बहुत कठिन था।
तभी उसकी नज़र दीवार पर टंगे एक चित्र पर पड़ी। यह चित्र देवी सती का था, जिन्होंने अपने पिता द्वारा पति शिव के अपमान से व्यथित होकर अग्नि में प्रवेश किया था। क्या यही सच्ची पत्नि-धर्म था? सुमित्रा सोचने लगी।
उसी समय, गाँव के पुरोहित ने दरवाजा खटखटाया। "बेटी," उन्होंने कहा, "तुम्हारा निर्णय क्या है? क्या तुम अपने पति के साथ स्वर्ग जाओगी?"
सुमित्रा ने गहरी साँस ली। उसने अपने बच्चों की तरफ देखा, जो डर से काँप रहे थे। फिर उसने पुरोहित की ओर देखा और कहा, "मुझे समय चाहिए।"
यह घटना लगभग 510 ईसवी की है, जब गुप्त साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत में नए राजवंशों का उदय हो रहा था। इस समय से पहले, वैदिक काल में सती प्रथा का कोई प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन अब यह धीरे-धीरे समाज में अपनी जड़ें जमा रही थी।
सुमित्रा की कहानी हमें उस समय ले जाती है जब सती प्रथा अपने शुरुआती दौर में थी। यह अभी अनिवार्य नहीं थी, लेकिन समाज में इसका दबाव बढ़ रहा था। महिलाओं को यह विकल्प दिया जा रहा था, लेकिन क्या यह वास्तव में एक विकल्प था?
कई दिन बीत गए। सुमित्रा ने अपना निर्णय ले लिया था। वह सती नहीं होगी। जब उसने यह फैसला सुनाया, तो गाँव में हलचल मच गई। कुछ लोगों ने उसका समर्थन किया, जबकि कुछ ने उसकी निंदा की।
लेकिन सुमित्रा अपने फैसले पर अडिग थी। उसने अपने बच्चों को पालने और गाँव की सेवा करने का संकल्प लिया। यह एक साहसिक निर्णय था, जो आने वाले समय में कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
समय बीतता गया और सती प्रथा का प्रभाव बढ़ता गया। 8वीं शताब्दी तक आते-आते यह प्रथा राजपूत समाज में गहराई से जड़ पकड़ चुकी थी। राजपूत महिलाएँ अपने पति की मृत्यु के बाद सती होने को अपना कर्तव्य मानने लगी थीं।
1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। राणा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी ने जौहर किया। यह घटना सती प्रथा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इसके बाद, सती होना वीरता और सम्मान का प्रतीक बन गया।
लेकिन क्या यह वास्तव में वीरता थी? या फिर यह एक ऐसी प्रथा थी जो महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर रही थी?
16वीं शताब्दी में मुगल शासक अकबर ने सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास किया। उन्होंने आदेश दिया कि कोई भी महिला बिना अपनी इच्छा के सती नहीं हो सकती। लेकिन यह आदेश कागजों तक ही सीमित रह गया।
समय बीतता गया और सती प्रथा का प्रभाव बढ़ता गया। 18वीं शताब्दी तक आते-आते यह प्रथा भारत के कई हिस्सों में फैल चुकी थी। लेकिन इसी समय एक नई चेतना का जन्म हो रहा था।
1772 में, एक छोटे से गाँव में एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम राम मोहन रखा गया। कौन जानता था कि यह बालक एक दिन भारतीय समाज में क्रांति ला देगा?
राम मोहन राय ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में ही कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन किया और पाया कि कहीं भी सती प्रथा का उल्लेख नहीं है।
1811 में, राम मोहन राय के जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उनके बड़े भाई जगमोहन की मृत्यु हो गई और उनकी भाभी को सती होने के लिए मजबूर किया गया।
राम मोहन राय ने अपनी भाभी को बचाने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे। इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया।
उन्होंने लेख लिखे, पुस्तकें प्रकाशित कीं और लोगों से बात की। उन्होंने तर्क दिया कि सती प्रथा न तो धार्मिक है और न ही मानवीय। लेकिन उनका विरोध भी हुआ। कई लोगों ने उन्हें विदेशी एजेंट और हिंदू धर्म का विरोधी करार दिया।
लेकिन राम मोहन राय अपने मिशन पर अडिग रहे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भी इस प्रथा को रोकने की अपील की।
1829 में, उनके प्रयासों को सफलता मिली। लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने एक कानून पारित किया जिसने सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। 4 दिसंबर, 1829 को यह कानून लागू हुआ।
यह एक ऐतिहासिक दिन था। सदियों पुरानी एक कुप्रथा पर कानूनी रोक लग गई थी। लेकिन क्या इसका मतलब यह था कि सती प्रथा पूरी तरह से समाप्त हो गई थी?
दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं था। कानून बन जाने के बावजूद, समाज में इस प्रथा के समर्थक अभी भी मौजूद थे। कई जगहों पर छिपे तौर पर यह प्रथा जारी रही।
1987 में, राजस्थान के देवराला गाँव में एक चौंकाने वाली घटना हुई। 18 वर्षीय रूप कंवर को उसके पति की मृत्यु के बाद सती होने के लिए मजबूर किया गया। यह घटना पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
इस घटना के बाद, सरकार ने सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1987 पारित किया। इस कानून ने न केवल सती होने को, बल्कि इसे प्रोत्साहित करने या महिमामंडित करने को भी अपराध घोषित कर दिया।
लेकिन क्या कानून बनाने से ही समस्या का समाधान हो जाता है? क्या समाज की सोच में बदलाव लाना भी जरूरी नहीं है?
आज, 21वीं सदी में, हम एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं। सती प्रथा जैसी कुरीतियाँ अब अतीत की बात लगती हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?
हालाँकि सती प्रथा अब लगभग समाप्त हो चुकी है, लेकिन इसकी जड़ें अभी भी समाज में मौजूद हैं। कई जगहों पर सती माताओं के मंदिर बने हुए हैं, जहाँ लोग पूजा करते हैं। क्या यह प्रथा को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देना नहीं है?
इसके अलावा, महिलाओं के प्रति भेदभाव के कई अन्य रूप अभी भी मौजूद हैं। दहेज प्रथा, बाल विवाह, और घरेलू हिंसा जैसी समस्याएँ अभी भी चुनौती बनी हुई हैं।
लेकिन आशा की किरण भी दिखाई दे रही है। आज की युवा पीढ़ी इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठा रही है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से जागरूकता फैलाई जा रही है।
सरकार भी अपनी भूमिका निभा रही है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं। महिला सशक्तिकरण के लिए कई कानून और योजनाएँ लागू की गई हैं।
लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या हमें और अधिक प्रयास नहीं करने चाहिए?
आज, जब हम सती प्रथा के इतिहास को पीछे मुड़कर देखते हैं, तो हमें एहसास होता है कि किसी भी समाज में बदलाव लाना कितना कठिन होता है। लेकिन यह असंभव नहीं है।
राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने हमें दिखाया है कि अगर हम दृढ़ संकल्प के साथ प्रयास करें, तो हम सदियों पुरानी कुरीतियों को भी समाप्त कर सकते हैं।
Citations:
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[2] https://www.bbc.com/hindi/india-65375019
[3] https://ghamasan.com/why-was-the-practice-of-sati-started-history-and-opposition-behind-it-rn/
[4] https://navbharattimes.indiatimes.com/education/gk-update/sati-pratha-nishedh-adhiniyam-things-you-must-know-about-sati-pratha/articleshow/72362475.cms
[5] https://www.youtube.com/watch?v=udWELmFQvzU
[6] https://testbook.com/question-answer/hn/the-custom-of-sati-was-banned-through-le--60741e2f9a7ce3af1fb4d2ea
[7] https://hindi.news18.com/photogallery/lifestyle/sati-pratha-history-all-you-want-to-know-about-prtn-1605978.html
[8] https://www.jetir.org/papers/JETIR1801203.pdf
[9] https://testbook.com/question-answer/hn/who-stopped-the-practice-of-sati-in-india--61e012a5b560587bac52b834
[10] https://www.jagran.com/news/national-raja-ram-mohan-roy-birth-anniversary-to-eliminate-the-evils-from-the-society-he-made-a-law-for-the-practice-of-sati-raja-ram-mohan-roy-was-born-on-22-may-dainik-jagran-23419019.html