सिद्ध चिकित्सा की रोमांचक यात्रा: प्राचीन ज्ञान से आधुनिक विज्ञान तक
हजारों वर्ष पहले, जब मानव सभ्यता अपने शैशव काल में थी, दक्षिण भारत की पवित्र भूमि पर एक अद्भुत चिकित्सा पद्धति का जन्म हुआ। यह पद्धति थी सिद्ध चिकित्सा - जो आज भी दुनिया भर में प्रचलित है। आइए, इस प्राचीन ज्ञान की रोमांचक यात्रा पर चलें, जो हमें वर्तमान तक ले आएगी।
सिद्ध चिकित्सा की कहानी लगभग 10,000 वर्ष पूर्व से शुरू होती है। उस समय दक्षिण भारत में द्रविड़ सभ्यता अपने चरम पर थी। कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव ने यह ज्ञान अपनी पत्नी पार्वती को दिया, जिन्होंने इसे नंदी को सिखाया। नंदी ने फिर यह ज्ञान 18 सिद्धों को प्रदान किया, जिन्होंने इसे आगे विकसित किया।
इन 18 सिद्धों में सबसे प्रमुख थे अगस्त्य मुनि, जिन्हें सिद्ध चिकित्सा का जनक माना जाता है। अगस्त्य ने न केवल चिकित्सा, बल्कि योग, ध्यान और रसायन शास्त्र पर भी गहन अध्ययन किया। उन्होंने अपने ज्ञान को तमिल भाषा में लिपिबद्ध किया, जो आज भी सिद्ध चिकित्सा का आधार है।
सिद्ध चिकित्सा का मूल सिद्धांत है प्रकृति के पांच तत्वों - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - का संतुलन। सिद्धों का मानना था कि इन तत्वों का असंतुलन ही रोगों का कारण है। उन्होंने शरीर में तीन दोषों - वात, पित्त और कफ - की अवधारणा दी, जो आयुर्वेद से मिलती-जुलती है।
सिद्धों ने रोग निदान के लिए आठ प्रकार की परीक्षाओं का विकास किया, जिसे "एनवाकाई थेरवुकल" कहा जाता है। इसमें नाड़ी परीक्षा, जीभ की जांच, त्वचा का रंग, आंखों की जांच, मल-मूत्र परीक्षा आदि शामिल हैं। यह पद्धति आज भी प्रचलित है।
सिद्ध चिकित्सा की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी औषधियां। सिद्धों ने हजारों जड़ी-बूटियों, खनिजों और धातुओं का अध्ययन किया और उनके गुणों को समझा। उन्होंने इन्हें विभिन्न रूपों में तैयार किया - काषाय (क्वाथ), चूर्ण, गुटिका (गोली), तैलम (तेल) आदि। सिद्धों ने पारद और गंधक जैसे खनिजों का भी उपयोग किया, जिन्हें वे विशेष प्रक्रियाओं द्वारा शुद्ध करते थे।
मध्यकाल में, जब उत्तर भारत में मुस्लिम शासकों का प्रभुत्व था, दक्षिण भारत में सिद्ध चिकित्सा का विकास जारी रहा। इस काल में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई, जैसे तिरुमूलर का "तिरुमंतिरम" और बोगर का "बोगर 7000"। इन ग्रंथों में न केवल चिकित्सा, बल्कि योग, ध्यान और आध्यात्म का भी वर्णन है।
16वीं-17वीं शताब्दी में, जब यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति का दौर था, सिद्ध चिकित्सा ने भी नए प्रयोग किए। इस काल में रसशास्त्र (अलकेमी) का विकास हुआ। सिद्धों ने धातुओं और खनिजों को औषधि के रूप में उपयोग करने की कला में महारत हासिल की। उन्होंने "मुप्पु" नामक एक रहस्यमय पदार्थ का विकास किया, जिसे वे सर्वरोगनाशक मानते थे।
ब्रिटिश शासन के दौरान सिद्ध चिकित्सा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अंग्रेजी शिक्षा और पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के प्रचार ने सिद्ध चिकित्सा को पीछे धकेल दिया। लेकिन कई समर्पित चिकित्सकों और विद्वानों ने इस ज्ञान को जीवित रखा। 19वीं शताब्दी के अंत में, पी. रामनाथन पिल्लै जैसे विद्वानों ने सिद्ध ग्रंथों का संकलन और प्रकाशन किया, जिससे इस ज्ञान को संरक्षित किया जा सका।
स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने सिद्ध चिकित्सा के पुनरुत्थान के लिए कई कदम उठाए। 1970 में केंद्रीय सिद्ध अनुसंधान परिषद की स्थापना की गई। आज, भारत में कई सिद्ध मेडिकल कॉलेज हैं जहाँ हजारों छात्र इस प्राचीन ज्ञान को सीख रहे हैं।
वर्तमान में, सिद्ध चिकित्सा एक नए युग में प्रवेश कर रही है। वैज्ञानिक शोध सिद्ध औषधियों की प्रभावकारिता को सिद्ध कर रहे हैं। जड़ी-बूटियों के रासायनिक विश्लेषण से नई दवाओं का विकास हो रहा है। सिद्ध चिकित्सा की समग्र दृष्टि आज के तनावपूर्ण जीवन में बहुत प्रासंगिक है।
सिद्ध चिकित्सा विशेष रूप से त्वचा रोगों, मधुमेह, गठिया और मानसिक रोगों के उपचार में प्रभावी मानी जाती है। "वर्मम" चिकित्सा, जो शरीर के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव देकर रोगों का उपचार करती है, दुनिया भर में लोकप्रिय हो रही है।
लेकिन चुनौतियाँ भी हैं। सिद्ध औषधियों की गुणवत्ता और मानकीकरण एक बड़ी चिंता है। कई देशों में सिद्ध चिकित्सा को वैधानिक मान्यता नहीं मिली है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक शोध और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
भविष्य में, सिद्ध चिकित्सा और आधुनिक चिकित्सा के बीच एक समन्वय की संभावना है। सिद्ध चिकित्सा की समग्र दृष्टि और आधुनिक चिकित्सा की तकनीकी क्षमता मिलकर एक नई स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण कर सकती हैं।
इस प्रकार, सिद्ध चिकित्सा की यात्रा प्राचीन सिद्धों से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों तक फैली हुई है। यह एक ऐसी विरासत है जो हमें याद दिलाती है कि स्वास्थ्य केवल बीमारी का अभाव नहीं है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा का संपूर्ण संतुलन है।
आज, जब हम तनाव, प्रदूषण और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं, सिद्ध चिकित्सा हमें एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने का मार्ग दिखाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हम प्रकृति का एक अभिन्न अंग हैं और उसके साथ सामंजस्य में रहकर ही हम वास्तविक स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं।
सिद्ध चिकित्सा की यह यात्रा यहीं समाप्त नहीं होती। यह एक सतत प्रक्रिया है, जो निरंतर विकसित हो रही है। जैसे-जैसे हम नई चुनौतियों का सामना करते हैं, सिद्ध चिकित्सा भी नए समाधान खोजती है। यह प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का एक अद्भुत संगम है, जो मानवता के कल्याण के लिए समर्पित है।
अंत में, सिद्ध चिकित्सा की यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान कभी पुराना नहीं होता। हजारों वर्ष पहले की गई खोजें आज भी प्रासंगिक हैं। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे पूर्वजों ने हमें एक अमूल्य विरासत दी है, जिसे संरक्षित करना और आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है।
सिद्ध चिकित्सा की यह यात्रा जारी है, नए अध्यायों के साथ, नई खोजों के साथ। और इस यात्रा में हम सभी सहभागी हैं - चाहे हम चिकित्सक हों, शोधकर्ता हों या सामान्य नागरिक। क्योंकि अंततः, सिद्ध चिकित्सा केवल एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, यह एक जीवन दर्शन है, जो हमें स्वस्थ, संतुलित और आनंदमय जीवन जीने की कला सिखाता है।
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