जैन धर्म का क्रमिक इतिहास: एक रोचक यात्रा
प्राचीन भारत की धरती पर, लगभग 2500 वर्ष पूर्व, एक ऐसे धर्म का उदय हुआ जिसने अहिंसा और आत्मशुद्धि के मार्ग को अपना मूल सिद्धांत बनाया। यह था जैन धर्म, जिसका इतिहास उतना ही रोचक है जितना कि इसके सिद्धांत। आइए इस धर्म की यात्रा को क्रमबद्ध तरीके से समझें, जो हमें प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक ले जाएगी।
प्रारंभिक काल: तीर्थंकरों का युग
जैन परंपरा के अनुसार, जैन धर्म का इतिहास अनादि काल से चला आ रहा है। इस धर्म के 24 महान शिक्षक हुए, जिन्हें तीर्थंकर कहा जाता है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे, जिनका समय अज्ञात है, लेकिन जैन मान्यताओं के अनुसार वे लाखों वर्ष पूर्व हुए थे।
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का समय लगभग 9वीं-8वीं शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। उन्होंने चार महाव्रतों - अहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह का उपदेश दिया। पार्श्वनाथ के उपदेशों ने जैन धर्म को एक नई दिशा दी और उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।
महावीर स्वामी और जैन धर्म का प्रसार
जैन धर्म के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के साथ आया। महावीर का जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व में वैशाली (वर्तमान बिहार) के पास कुंडग्राम में हुआ था। वे क्षत्रिय वंश के राजकुमार थे, लेकिन 30 वर्ष की आयु में उन्होंने राजसी वैभव का त्याग कर दिया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े।
12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद, 42 वर्ष की आयु में महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने अपने शेष जीवन का 30 वर्ष जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगा दिया। महावीर ने पार्श्वनाथ के चार महाव्रतों में एक और महाव्रत - ब्रह्मचर्य को जोड़ा।
महावीर के उपदेशों का मूल था - अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह। उन्होंने कहा कि हर जीव में आत्मा है और हमें किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। उन्होंने यह भी सिखाया कि सत्य अनेक पहलुओं वाला होता है और हमें दूसरों के विचारों का भी सम्मान करना चाहिए।
महावीर के उपदेशों ने लोगों को आकर्षित किया और उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। उन्होंने एक संघ की स्थापना की जिसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल थे। महावीर के समय में ही जैन धर्म का प्रसार मगध, कोसल, वत्स और अंग जैसे राज्यों में हुआ।
प्रारंभिक बौद्ध परिषदें और जैन धर्म का विकास
महावीर के निर्वाण (मृत्यु) के बाद, उनके शिष्यों ने जैन धर्म के सिद्धांतों को संरक्षित करने और प्रचारित करने के लिए कई परिषदों का आयोजन किया। इन परिषदों ने जैन धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पहली जैन परिषद (लगभग 300 ईसा पूर्व):
यह परिषद पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य महावीर की शिक्षाओं को संकलित करना था। स्थूलभद्र ने इस परिषद की अध्यक्षता की। इस परिषद में 12 अंगों का संकलन किया गया।
दूसरी जैन परिषद (लगभग 512 ईस्वी):
यह परिषद वल्लभी (गुजरात) में आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य जैन ग्रंथों का पुनः संकलन करना था। देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने इस परिषद की अध्यक्षता की। इस परिषद में 12 उपांगों का संकलन किया गया।
इन परिषदों ने जैन धर्म के सिद्धांतों और शिक्षाओं को सुव्यवस्थित किया और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया।
जैन धर्म का विभाजन: श्वेतांबर और दिगंबर
समय के साथ, जैन धर्म में दो प्रमुख संप्रदायों का उदय हुआ - श्वेतांबर और दिगंबर। यह विभाजन लगभग 3री-4थी शताब्दी ईस्वी में हुआ।
दिगंबर संप्रदाय:
• इस संप्रदाय के अनुयायी मानते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्ण नग्नता आवश्यक है।
• वे मानते हैं कि महावीर ने कभी वस्त्र नहीं पहने।
• उनका मानना है कि महिलाएं मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं।
श्वेतांबर संप्रदाय:
• इस संप्रदाय के अनुयायी सफेद वस्त्र पहनते हैं।
• वे मानते हैं कि महावीर ने वस्त्र पहने थे।
• उनका मानना है कि महिलाएं भी मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
इस विभाजन के बावजूद, दोनों संप्रदाय जैन धर्म के मूल सिद्धांतों पर एकमत हैं।
मौर्य काल और जैन धर्म
मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) जैन धर्म के लिए एक स्वर्ण युग था। चंद्रगुप्त मौर्य, मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, जैन धर्म के अनुयायी बन गए थे। जैन परंपरा के अनुसार, चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में जैन मुनि भद्रबाहु के साथ कर्नाटक में श्रवणबेलगोला में तपस्या की थी।
अशोक के पौत्र सम्प्रति ने भी जैन धर्म को संरक्षण दिया। उसने कई जैन मंदिरों और स्तूपों का निर्माण करवाया। इस काल में जैन धर्म का प्रसार दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत में हुआ।
गुप्त काल और जैन धर्म
गुप्त काल (320-550 ईस्वी) में भी जैन धर्म को राजकीय संरक्षण मिला। इस काल में कई जैन मंदिरों का निर्माण हुआ। उदाहरण के लिए, कुमारगुप्त प्रथम ने मथुरा में एक भव्य जैन मंदिर का निर्माण करवाया था।
इस काल में जैन साहित्य का भी विकास हुआ। उमास्वाति ने 'तत्त्वार्थसूत्र' की रचना की, जो जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। सिद्धसेन दिवाकर ने 'न्यायावतार' की रचना की, जो जैन तर्कशास्त्र का प्रमुख ग्रंथ है।
मध्यकाल में जैन धर्म
मध्यकाल में जैन धर्म को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ, कई जैन मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। हालांकि, कुछ शासकों ने जैन धर्म को संरक्षण भी दिया।
गुजरात और राजस्थान के राजपूत शासकों ने जैन धर्म को संरक्षण दिया। कुमारपाल (12वीं शताब्दी) ने जैन धर्म को अपना लिया और उसके शासनकाल में कई जैन मंदिरों का निर्माण हुआ।
दक्षिण भारत में, गंग और होयसल राजवंशों ने जैन धर्म को संरक्षण दिया। श्रवणबेलगोला में गोमतेश्वर की विशाल प्रतिमा इसी काल में बनी।
इस काल में जैन साहित्य का भी विकास हुआ। हेमचंद्र (12वीं शताब्दी) ने 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' की रचना की, जो जैन इतिहास का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
आधुनिक काल में जैन धर्म
19वीं शताब्दी में, जैन धर्म में सुधार आंदोलन शुरू हुआ। आचार्य आत्माराम (1837-1896) ने स्थानकवासी संप्रदाय में सुधार किए। उन्होंने शिक्षा पर जोर दिया और जैन समाज में प्रचलित कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई।
वीर सेवा मंदिर आंदोलन ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन ने जैन धर्म के सिद्धांतों को आम जनता तक पहुंचाया।
20वीं शताब्दी में, जैन धर्म ने वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई। 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में वीरचंद गांधी ने जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को पश्चिमी दुनिया के सामने रखा।
आज, जैन धर्म के अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं। भारत के अलावा, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में भी बड़ी संख्या में जैन समुदाय है। जैन धर्म के सिद्धांत, विशेषकर अहिंसा का सिद्धांत, आज की दुनिया में बहुत प्रासंगिक है। ऐसी आशा है कि भविष्य में कभी एक बार फिर जैन धर्म का प्रभाव बढ़ेगा !
Citations:
[1] https://www.britannica.com/topic/Jainism
[2] https://www.worldhistory.org/jainism/
[3] https://study.com/academy/lesson/jainism-definition-origin-founder.html
[4] https://en.wikipedia.org/wiki/Jainism
[5] http://www.jaindharmonline.com/about/jainism-history
[6] https://www.slideshare.net/slideshow/history-of-jainism/14579241
[7] https://www.qcc.cuny.edu/socialSciences/ppecorino/PHIL_of_RELIGION_TEXT/CHAPTER_2_RELIGIONS/Jainism.htm
[8] https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_Jainism
[9] https://www.pewresearch.org/short-read/2021/08/17/6-facts-about-jains-in-india/
[10] https://courses.lumenlearning.com/atd-herkimer-worldreligions/chapter/origins-and-history/
[11] http://www.jaindharmonline.com/about/principles
[12] https://www.bbc.co.uk/religion/religions/jainism/ataglance/glance.shtml
[13] https://jainworld.com/library/jain-books/books-on-line/jainworld-books-in-indian-languages/the-jaina-path-of-ahimsa/principles-of-jainism/
[14] https://srmdelhi.org/blogs/en/2017/06/5-fundamentals-of-jainism/
[15] https://testbook.com/question-answer/principle-of-jainism-include--61791703fcf6bebe1246ee31
[16] https://www.slideshare.net/slideshow/jainism-62088342/62088342
[17] https://byjus.com/free-ias-prep/ncert-notes-jainism-upsc-exam/
[18] https://eprints.soas.ac.uk/13657/3/Jaina_Law_Shramana.pdf
[19] https://education.nationalgeographic.org/resource/jainism/
[20] https://www.drishtiias.com/to-the-points/paper1/jainism-3