बौद्ध धर्म का क्रमिक इतिहास: एक रोचक यात्रा
प्रस्तावना
बौद्ध धर्म, जिसे सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) द्वारा स्थापित किया गया था, प्राचीन भारत के धार्मिक और दार्शनिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रतीक है। यह धर्म न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में फैल गया और आज भी विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है। इस लेख में, हम बौद्ध धर्म के विकास की यात्रा को क्रमिक रूप से समझेंगे, जो हमें प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक समय तक ले जाएगी।
सिद्धार्थ गौतम का जीवन और ज्ञान प्राप्ति
सिद्धार्थ गौतम का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। वे शाक्य गणराज्य के राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के पुत्र थे। एक भविष्यवाणी के अनुसार, सिद्धार्थ या तो एक महान राजा बनेंगे या एक महान संत। उनके पिता ने उन्हें राजमहल में सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं में रखा ताकि वे संसार के दुखों से अनभिज्ञ रहें।
चार दृष्टियाँ और महाभिनिष्क्रमण
29 वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ ने चार दृष्टियाँ देखीं: एक वृद्ध व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत व्यक्ति, और एक संन्यासी। इन दृश्यों ने उन्हें गहरे विचार में डाल दिया और उन्होंने संसार के दुखों का कारण जानने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने परिवार और राजमहल को त्याग दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
ज्ञान प्राप्ति
सिद्धार्थ ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की, लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली। अंततः, उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया, जो अतिसंयम और अतिलिप्सा के बीच का मार्ग था। बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए, उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध (जाग्रत) कहलाए। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी, जो बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत हैं।
प्रारंभिक बौद्ध धर्म और संघ की स्थापना
ज्ञान प्राप्ति के बाद, बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को सारनाथ में धर्मचक्र प्रवर्तन सुत्त (पहला उपदेश) दिया। इसके बाद, उन्होंने संघ (बौद्ध भिक्षुओं का समुदाय) की स्थापना की। संघ का उद्देश्य बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करना और उन्हें फैलाना था। बुद्ध ने अपने जीवन के शेष 45 वर्षों में गंगा के मैदानों में यात्रा की और अपने धर्म का प्रचार किया।
चार आर्य सत्य
1. **दुःख**: जीवन में दुःख है।
2. **दुःख का कारण**: दुःख का कारण तृष्णा (इच्छा) है।
3. **दुःख का निरोध**: तृष्णा का निरोध करने से दुःख का अंत हो सकता है।
4. **दुःख निरोध का मार्ग**: अष्टांगिक मार्ग का पालन करके दुःख का अंत किया जा सकता है।
अष्टांगिक मार्ग
1. **सम्यक दृष्टि**: सही दृष्टिकोण
2. **सम्यक संकल्प**: सही संकल्प
3. **सम्यक वाक**: सही वाणी
4. **सम्यक कर्म**: सही कर्म
5. **सम्यक आजीविका**: सही आजीविका
6. **सम्यक प्रयास**: सही प्रयास
7. **सम्यक स्मृति**: सही स्मृति
8. **सम्यक समाधि**: सही ध्यान
बौद्ध धर्म का प्रसार और प्रमुख बौद्ध परिषदें
बुद्ध के निर्वाण (मृत्यु) के बाद, उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए कई बौद्ध परिषदों का आयोजन किया। इन परिषदों ने बौद्ध धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पहली बौद्ध परिषद (483 ईसा पूर्व)
पहली बौद्ध परिषद राजगृह (वर्तमान राजगीर) में आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य बुद्ध की शिक्षाओं और संघ के अनुशासन को संहिताबद्ध करना था। महाकश्यप ने इस परिषद की अध्यक्षता की।
दूसरी बौद्ध परिषद (383 ईसा पूर्व)
दूसरी बौद्ध परिषद वैशाली में आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य संघ में उत्पन्न विवादों को सुलझाना था। इस परिषद में महा संघिका और स्थविरवादियों के बीच विभाजन हुआ।
तीसरी बौद्ध परिषद (250 ईसा पूर्व)
तीसरी बौद्ध परिषद पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में सम्राट अशोक के शासनकाल में आयोजित की गई थी। इसका उद्देश्य बौद्ध धर्म को शुद्ध करना और उसे अन्य देशों में फैलाना था। मोग्गलिपुत्त तिस्स ने इस परिषद की अध्यक्षता की।
चौथी बौद्ध परिषद (1वीं सदी ईस्वी)
चौथी बौद्ध परिषद कश्मीर में सम्राट कनिष्क के शासनकाल में आयोजित की गई थी। इस परिषद में बौद्ध धर्म महायान और हीनयान में विभाजित हुआ।
बौद्ध धर्म का विभाजन और महायान का उदय
बौद्ध धर्म के प्रारंभिक वर्षों में, विभिन्न शिक्षाओं की व्याख्याओं में मतभेद उत्पन्न हुए, जिसके परिणामस्वरूप 18 पारंपरिक बौद्ध संप्रदायों का उदय हुआ। इनमें से केवल थेरवाद (हीनयान) आज भी अस्तित्व में है। महायान बौद्ध धर्म का उदय पहली सदी ईस्वी में हुआ। महायान बौद्ध धर्म ने बोधिसत्व के आदर्श को अपनाया, जो अपने ज्ञान को दूसरों की मुक्ति के लिए समर्पित करता है।
महायान बौद्ध धर्म
महायान बौद्ध धर्म ने बुद्ध को एक अनंत, सर्वव्यापी, और पारलौकिक अस्तित्व के रूप में देखा। महायान सूत्रों में प्रज्ञापारमिता सूत्र, लोटस सूत्र, और लंकावतार सूत्र प्रमुख हैं। महायान बौद्ध धर्म चीन, जापान, कोरिया, और तिब्बत में प्रमुखता से फैला।
वज्रयान बौद्ध धर्म
वज्रयान बौद्ध धर्म महायान से विकसित हुआ और तांत्रिक परंपराओं पर आधारित है। यह तिब्बत, भूटान, और नेपाल में प्रमुख है। वज्रयान बौद्ध धर्म में तंत्र, मंत्र, और ध्यान की विशेष विधियाँ शामिल हैं।
बौद्ध धर्म का भारत से अन्य देशों में प्रसार
सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार भारत से बाहर हुआ। अशोक ने बौद्ध धर्म को श्रीलंका, मध्य एशिया, और दक्षिण पूर्व एशिया में फैलाने के लिए मिशनरियों को भेजा। बौद्ध धर्म चीन में पहली सदी ईस्वी में पहुंचा और वहां से कोरिया और जापान में फैला।
चीन में बौद्ध धर्म
चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार हान राजवंश के समय में हुआ। बौद्ध धर्म ने ताओवाद और कन्फ्यूशियसवाद के साथ मिलकर चीनी संस्कृति को समृद्ध किया। बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय जैसे चान (ज़ेन) और तियानताई चीन में विकसित हुए।
जापान में बौद्ध धर्म
जापान में बौद्ध धर्म का प्रसार कोरिया के माध्यम से हुआ। जापान में बौद्ध धर्म ने शिंतो धर्म के साथ मिलकर एक विशिष्ट धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का निर्माण किया। जापान में ज़ेन बौद्ध धर्म और निचिरेन बौद्ध धर्म प्रमुख हैं।
बौद्ध धर्म का पतन और पुनरुत्थान
12वीं सदी के बाद, बौद्ध धर्म भारत में धीरे-धीरे लुप्त हो गया। इसके कई कारण थे, जैसे हिंदू धर्म का पुनरुत्थान, मुस्लिम आक्रमण, और बौद्ध संघ में भ्रष्टाचार। हालांकि, बौद्ध धर्म ने एशिया के अन्य देशों में गहरी जड़ें जमा लीं और वहां फलता-फूलता रहा।
आधुनिक काल में बौद्ध धर्म
20वीं सदी में, बौद्ध धर्म ने पश्चिमी देशों में भी अपनी पहचान बनाई। ध्यान और योग की विधियों ने बौद्ध धर्म को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया। आज, बौद्ध धर्म के अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं और यह धर्म अपनी शिक्षाओं और प्रथाओं के माध्यम से लोगों को प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
बौद्ध धर्म का इतिहास एक जटिल और रोचक यात्रा है, जो हमें प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक समय तक ले जाती है। यह यात्रा दर्शाती है कि कैसे विभिन्न कालखंडों में धार्मिक विचारों का विकास हुआ और कैसे बौद्ध धर्म ने विभिन्न संस्कृतियों और समाजों को प्रभावित किया। बौद्ध धर्म की यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसी कहानी है जो हमें अपने अतीत से जोड़ती है और भविष्य की ओर प्रेरित करती है।
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