पेन मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण उपकरण रहा है। इसका इतिहास काफी पुराना और रोचक है। आइए इसके विकास की यात्रा पर एक नज़र डालें:
प्राचीन काल में लेखन:
मानव सभ्यता के आरंभ से ही लोग अपने विचारों और जानकारी को संरक्षित करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करते रहे हैं। प्राचीन काल में लोग पत्थरों, मिट्टी की टेबलेट, और पेड़ों की छाल पर लिखते थे। इस समय लेखन के लिए धातु के औजार, पत्थर के टुकड़े, या जानवरों की हड्डियों का इस्तेमाल किया जाता था।
लगभग 4000 ईसा पूर्व, मिस्र में पैपायरस का आविष्कार हुआ, जो लेखन के लिए एक बेहतर माध्यम था। इसके साथ ही रीड पेन का भी विकास हुआ, जो नरकट से बनाया जाता था और स्याही में डुबोकर लिखने के लिए उपयोग किया जाता था।
क्विल पेन का युग:
6वीं शताब्दी तक, यूरोप में क्विल पेन का प्रचलन हो गया था। ये पेन बड़े पक्षियों, जैसे हंस या कौवे, के पंखों से बनाए जाते थे। क्विल पेन ने लेखन को और अधिक सुविधाजनक बना दिया। इसका उपयोग कई शताब्दियों तक चला और यह रेनेसां काल के दौरान भी प्रचलित रहा।
धातु के पेन का आगमन:
19वीं शताब्दी के आरंभ में, धातु के पेन का विकास हुआ। 1803 में, ब्रायन डोनकिन ने स्टील पेन बनाने की मशीन का पेटेंट कराया। 1830 तक, बर्मिंघम (इंग्लैंड) धातु के पेन का प्रमुख उत्पादक बन गया था।
फाउंटेन पेन का आविष्कार:
फाउंटेन पेन का इतिहास काफी पुराना है। 1636 में, जर्मन गणितज्ञ डेनियल श्वेंटर ने एक ऐसे पेन का वर्णन किया जो अपने अंदर स्याही रखता था। हालांकि, आधुनिक फाउंटेन पेन का आविष्कार 1827 में रोमानियाई आविष्कारक पेट्राचे पोएनारू ने किया।
1884 में, अमेरिकी आविष्कारक लुईस वाटरमैन ने फाउंटेन पेन में कई सुधार किए और इसे व्यावसायिक रूप से सफल बनाया। वाटरमैन ने स्याही के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए एक नए प्रकार के फीडर का आविष्कार किया, जिसने फाउंटेन पेन को और अधिक विश्वसनीय बना दिया।
बॉलपॉइंट पेन का आविष्कार:
बॉलपॉइंट पेन का आविष्कार 20वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण घटना थी। 1888 में, अमेरिकी वकील जॉन जे. लाउड ने एक रोलर बॉल टिप पेन का पेटेंट कराया, जो मोटे कागज और चमड़े पर लिखने के लिए डिज़ाइन किया गया था। हालांकि, यह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हुआ।
1938 में, हंगेरियन-अर्जेंटीनी पत्रकार लास्ज़लो बीरो और उनके भाई जॉर्ज ने आधुनिक बॉलपॉइंट पेन का आविष्कार किया। उन्होंने पाया कि अखबार की छपाई में इस्तेमाल होने वाली स्याही जल्दी सूखती है और स्मियर नहीं होती। उन्होंने इस स्याही को एक छोटे गोले के साथ जोड़ा जो घूमते हुए स्याही को कागज पर लगाता था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बीरो के पेन का उपयोग रॉयल एयर फोर्स के पायलटों द्वारा किया गया क्योंकि ये ऊंचाई पर भी काम करते थे जहां फाउंटेन पेन लीक हो जाते थे।
1945 में, मार्सेल बिच ने फ्रांस में बीरो के पेटेंट का अधिग्रहण किया और बिक क्रिस्टल पेन का उत्पादन शुरू किया। यह पेन जल्द ही दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया।
जेल पेन का विकास:
1960 के दशक में, जापानी कंपनी साकुरा कलर प्रोडक्ट्स कॉरपोरेशन ने पहला जेल पेन विकसित किया। इसमें पानी आधारित जेल स्याही का उपयोग किया गया था जो बॉलपॉइंट पेन की तुलना में अधिक सुचारू रूप से बहती थी।
रोलरबॉल पेन:
1960 के अंत में, जापानी कंपनी ओहटो ने रोलरबॉल पेन का आविष्कार किया। यह पेन बॉलपॉइंट और फाउंटेन पेन के बीच का एक संयोजन था, जिसमें तरल स्याही का उपयोग किया जाता था लेकिन बॉल टिप के माध्यम से।
भारत में पेन का इतिहास:
भारत में पेन का इतिहास प्राचीन काल से ही रहा है। प्राचीन भारत में तालपत्र और भोजपत्र पर लेखन के लिए लोहे की कलम का उपयोग किया जाता था।
आधुनिक पेन का प्रचलन भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के आरंभ में, फाउंटेन पेन भारत में लोकप्रिय हुए।
स्वतंत्रता के बाद, भारत में पेन उद्योग का विकास हुआ। 1950 के दशक में, हिंदुस्तान पेंसिल्स (अब हिंदुस्तान पेंसिल्स एंड पेन्स) की स्थापना हुई, जिसने 'नटराज' ब्रांड के नाम से पेंसिल और पेन बनाना शुरू किया।
1960 और 70 के दशक में, विलसन फाउंटेन पेन और रेनॉल्ड्स बॉलपेन भारतीय बाजार में प्रमुख ब्रांड बन गए।
वर्तमान स्थिति:
आज, पेन उद्योग में कई नवाचार हो रहे हैं। डिजिटल पेन, जो लिखित सामग्री को डिजिटल फॉर्मेट में परिवर्तित कर सकते हैं, का विकास हुआ है। इसके अलावा, पर्यावरण के अनुकूल पेन भी बाजार में आ रहे हैं जो जैव-अपघटनीय सामग्री से बने होते हैं।
हालांकि डिजिटल युग में कंप्यूटर और स्मार्टफोन के प्रचलन ने लिखने की आदतों को प्रभावित किया है, फिर भी पेन अभी भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है और इसका महत्व कम नहीं हुआ है।
निष्कर्ष:
पेन का इतिहास मानव सभ्यता के विकास का एक रोचक अध्याय है। प्राचीन काल के सरल लेखन उपकरणों से लेकर आधुनिक तकनीकी पेन तक, यह यात्रा मानव प्रगति और नवाचार का प्रतीक है। पेन न केवल एक लेखन उपकरण रहा है, बल्कि यह ज्ञान, विचारों और कला के प्रसार का एक माध्यम भी रहा है। आज भी, डिजिटल युग में, पेन अपनी जगह बनाए हुए है और आने वाले समय में भी इसका महत्व कम होने की संभावना नहीं है।
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