मेरा जीवन: एक अद्भुत यात्रा
मैं, लाल बहादुर शास्त्री, 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय के एक साधारण परिवार में जन्मा था। मेरे पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक स्कूल शिक्षक थे और माता रामदुलारी देवी एक सरल और धार्मिक महिला थीं। बचपन से ही मुझे सादगी और ईमानदारी के संस्कार मिले।
मेरा बचपन बहुत ही साधारण था। जब मैं मात्र डेढ़ वर्ष का था, तब मेरे पिता का देहांत हो गया। मेरी माँ ने बड़े संघर्ष से हम तीन भाई-बहनों का पालन-पोषण किया। गरीबी के कारण स्कूल जाने के लिए जूते तक नहीं थे, लेकिन पढ़ने की ललक थी। गर्मियों की तपती धूप में भी नंगे पांव स्कूल जाता था।
एक दिन की बात है, मैं अपने दोस्तों के साथ स्कूल जा रहा था। रास्ते में एक आम का बाग था। मेरे दोस्त पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ने लगे। मैं नीचे खड़ा रहा। तभी माली आ गया और उसने मुझे पकड़ लिया। उसने मुझे डांटते हुए कहा - "तुम अनाथ हो, इसलिए और भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए।" ये शब्द मेरे दिल में गहरे उतर गए। मैंने तब से कभी गलत काम नहीं किया।
स्कूल में मेरे शिक्षक निष्कामेश्वर प्रसाद मिश्र ने मुझे बहुत प्रेरित किया। उन्होंने मुझे गुरु गोबिंद सिंह, राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे महान नेताओं की कहानियाँ सुनाईं। इन कहानियों ने मेरे मन में देशभक्ति की भावना जगा दी।
1921 में जब मैं 10वीं कक्षा में था, तब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आह्वान किया। मैंने तुरंत स्कूल छोड़ दिया और आंदोलन में कूद पड़ा। मेरी माँ बहुत दुखी हुईं, लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि देश की आजादी के लिए यह जरूरी है।
1925 में मैंने काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। यहीं से मुझे 'शास्त्री' की उपाधि मिली, जो बाद में मेरे नाम का हिस्सा बन गई। इसी दौरान मैं लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित 'सर्वेंट्स ऑफ पीपल सोसाइटी' का सदस्य बना और हरिजनों के उत्थान के लिए काम करने लगा।
1928 में मेरा विवाह ललिता देवी से हुआ। मैंने दहेज लेने से इनकार कर दिया और केवल 5 मीटर खादी स्वीकार की। यह मेरे जीवन के सादगी और सिद्धांतों का प्रतीक था।
स्वतंत्रता संग्राम में मेरी सक्रिय भागीदारी रही। 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण मुझे 2 साल की जेल हुई। जेल में भी मैंने पढ़ाई जारी रखी और पश्चिमी दार्शनिकों और क्रांतिकारियों के विचारों का अध्ययन किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी मैंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और फिर से जेल गया।
आजादी के बाद 1947 में मैं उत्तर प्रदेश का गृह और परिवहन मंत्री बना। मंत्री के रूप में मैंने कई महत्वपूर्ण सुधार किए। पुलिस विभाग में मैंने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठी की जगह पानी के जेट का इस्तेमाल शुरू करवाया। परिवहन विभाग में पहली बार महिला कंडक्टरों की नियुक्ति की।
1951 में पंडित नेहरू ने मुझे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया। रेल मंत्री के रूप में मैंने कई सुधार किए। 1956 में एक बड़ी रेल दुर्घटना के लिए मैंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। मेरी ईमानदारी से प्रभावित होकर नेहरू जी ने मुझे वापस मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया।
1964 में नेहरू जी के निधन के बाद मैं भारत का दूसरा प्रधानमंत्री बना। यह मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी। देश खाद्यान्न संकट और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। मैंने हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की शुरुआत की। किसानों और जवानों को प्रोत्साहित करने के लिए मैंने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया।
1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। यह मेरे नेतृत्व की सबसे बड़ी परीक्षा थी। मैंने दृढ़ता से फैसले लिए और सेना का मनोबल बढ़ाया। हमारी सेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। युद्ध के दौरान मैंने देशवासियों से अपील की कि वे सप्ताह में एक दिन उपवास रखें ताकि सैनिकों के लिए अनाज बचाया जा सके। पूरे देश ने मेरी अपील का पालन किया।
युद्ध के बाद शांति वार्ता के लिए मैं ताशकंद गया। 10 जनवरी 1966 को समझौते पर हस्ताक्षर हुए। लेकिन अगली सुबह 11 जनवरी को मेरा निधन हो गया। मेरी अचानक मृत्यु ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया।
मेरा जीवन सादगी और ईमानदारी का प्रतीक रहा। मैंने हमेशा देश और जनता के हित में काम किया। मेरा मानना था कि नेता को जनता की भाषा समझनी चाहिए और उनके दुख-दर्द में शामिल होना चाहिए।
आज जब मैं अपने जीवन पर नजर डालता हूँ, तो मुझे संतोष है कि मैंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया। मेरा सपना था कि भारत एक मजबूत, समृद्ध और न्यायसंगत देश बने। मुझे विश्वास है कि आने वाली पीढ़ियाँ इस सपने को साकार करेंगी।
मेरा जीवन एक लंबी और रोमांचक यात्रा रही। कभी ऊंचाइयां तो कभी गहरी खाइयां। लेकिन हर कदम पर देश और देशवासियों के लिए कुछ कर गुजरने की ललक थी। आज भी मेरी आत्मा भारत के विकास के लिए प्रार्थनारत है।
मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवन से प्रेरणा लेकर युवा पीढ़ी देश सेवा के लिए आगे आएगी। वे मेरे इस संदेश को याद रखेंगे - "जो व्यक्ति अपने देश के लिए जीता है, वही वास्तव में जीता है।"
Citations:
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